Monday, April 24, 2017

किसान

जिस सड़क हम चल न पायें,
वँहा वह राह बनाता है।
उस बस्ती में झुग्गी उसकी,
जँहा रहते शहरी कतराता है।।
जो परिश्रम हमसे एक पहर ना हो,
उसे वह जीवन बनाता है।
पृथ्वी अपने अक्ष पर टिकी हो चाहे,
किसान अपना हल वँहा चलाता है।।
आने में वर्षा देर कर सकती है,
वर्षा से पहले जमीं को पसीने से सींचतें है।
हम तो उसकी मेहनत के ख़रीददार है,
जो रोटी के बदले उन्हें पैसे देते है।।

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