मेरी बातें बुरी ही सही,
उसकी ख़ुशी का सामान तो है।
मेरी लिए ग़मों की रात सही,
उसकी नई सुबह की अज़ान तो है।।
मेरे दर्द का बोझ क्यों ढोता कोई,
जिसके लिए मेरा नाम बस एक नाम तो है।
उसका हुस्न अब भी हुस्न-ए-कमाल है,
मेरे साथ रहकर जिंदगी उसकी बेज़ार तो है।।
क्या मिलेगा साथ रहकर उसे मेरे,
जिस दुःखों की वो हक़दार नहीं, मुझपर उसका पहाड़ तो है।
घरवालों को क्यों नाराज़ करे मेरे ख़ातिर,
मुझसे बढ़कर उनका सम्मान तो है।।
ऐ ग़म सितमगर यकीं कर मेरा,
सारे ऐब हो सकते है मुझमे, साथ वफ़ा-ए-प्यार भी तो है।
छोड़ दे तू साथ मेरा, ग़र जो तू चाहे
सारी उम्र काट दूँगा, साथ मेरे तेरे हिज़्र की रात तो है।।