Saturday, April 29, 2017

ग़ज़ल

कहीं बातें, हुई होंगी, कहीं वादा, हुआ होगा
निगाहों ही निगाहों में,कोई अपना हुआ होगा
मुहब्बत यूं नहीं चलती, बिना रफ़तार की आँधी 
कहीं तो बह रही दरिया, किनारा भी हुआ होगा॥ 
मुकामे दौर को देखे, उमर नादान बन जाती 
अभी तो इक गिला आई, तड़फ जाया हुआ होगा॥

 
बहारें ही पता देंगी, जरा उस बाग में जाओ
जहां कलियाँ खिली होगी, वहीं भौरा हुआ होगा॥
जमाने की नजर बचके, चली होगी ये पुरवाई
सितम आगोश है देखों, कयामत भी हुआ होगा॥
किसी ने चाह ना देखी, दिलों की बात दिल जाने   
अरे कुन्दन नजर बदलों, निशाना भी हुआ होगा॥
मछलियाँ टांग दी जाती, निशाने तीर चल जाते
बहें जब आब आँखों से, बहाना भी हुआ होगा॥

Monday, April 24, 2017

किसान

जिस सड़क हम चल न पायें,
वँहा वह राह बनाता है।
उस बस्ती में झुग्गी उसकी,
जँहा रहते शहरी कतराता है।।
जो परिश्रम हमसे एक पहर ना हो,
उसे वह जीवन बनाता है।
पृथ्वी अपने अक्ष पर टिकी हो चाहे,
किसान अपना हल वँहा चलाता है।।
आने में वर्षा देर कर सकती है,
वर्षा से पहले जमीं को पसीने से सींचतें है।
हम तो उसकी मेहनत के ख़रीददार है,
जो रोटी के बदले उन्हें पैसे देते है।।