उन अजनबी आँखों को देखकर
मेरी आँखों में खुमार छा गया।
हाल क्या बताऊँ अपने दिल का
मेरे दिल-ओ-दिमाग को वो भा गया।।
अब तलक देखा न था ऐसा कँही
नैनों में बसते हो जैसे दास्तानें अनकहीं।
धीरे-धीरे लम्हा-लम्हा ही सही
मुझको भी उन आँखों को पढ़ने आ गया।।
शरारतें थी भरी जिन आँखों में कभी
अब उनमें इक कशिश भी रहती है।
जिनके लिये पागल रहते थे हम कभी
अब उन आँखों में मेरा इंतज़ार आ गया।।
अंजान सा इक रिश्ता जुड़ा है
जिसका कोई नाम नहीं।
लेकिन बेसब्री तो देखो पागलपन की
हर घड़ी ख़्याल उसी का आ गया।।
अब की जीना है कि मरना है
इस पर उनकी ही मेहर।
मैं तो इस रूह-ओ-जान को
उनपे लुटा सा गया।।