Thursday, August 3, 2017

अजनबी आँखें

उन अजनबी आँखों को देखकर
मेरी आँखों में खुमार छा गया।
हाल क्या बताऊँ अपने दिल का
मेरे दिल-ओ-दिमाग को वो भा गया।।

अब तलक देखा न था ऐसा कँही
नैनों में बसते हो जैसे दास्तानें अनकहीं।
धीरे-धीरे लम्हा-लम्हा ही सही
मुझको भी उन आँखों को पढ़ने आ गया।।

शरारतें थी भरी जिन आँखों में कभी
अब उनमें इक कशिश भी रहती है।
जिनके लिये पागल रहते थे हम कभी
अब उन आँखों में मेरा इंतज़ार आ गया।।

अंजान सा इक रिश्ता जुड़ा है
जिसका कोई नाम नहीं।
लेकिन बेसब्री तो देखो पागलपन की
हर घड़ी ख़्याल उसी का आ गया।।

अब की जीना है कि मरना है
इस पर उनकी ही मेहर।
मैं तो इस रूह-ओ-जान को
उनपे लुटा सा गया।।

Sunday, May 21, 2017

ग़ज़ल

खुदा भी जब जमीं पर आसमाँ पर देखता होगा”

हवाओं में तपिस इतनी भिगे दामन मिनारों में
न बच पाए चुनर धानी न पानी ही किनारों में
बदले रुख दिशाओं ने भली बरसात की बातें
सनम अपनी अदाओं को दिखादे आ दिदारों में।।

बुलाती है तुझे तेरी तलैया आज चिंता में
तड़फती हैं मछलियां चैन खोती घिर विचारों में।।

दरख्तों की नमी सूखी हुई जस बांस की बंसी
बजा दो राग बासंती प्रिये बागों बिहारों में।।

सुबह होती तरस जगती अधर प्यासे हुए मेरे
पिला दो घूंट प्याले को तमन्ना तक इसारों में।।

जिला दो फिर बहे दरिया दिखाए जोश में मोजा
करवटें ले रही धरती सरकती है विकारों में।।

सुहानी रात में आकाश तारों से भरा रहता
मगर दिन में अगन वर्षा गिराए छुप सितारों में।।

Saturday, April 29, 2017

ग़ज़ल

कहीं बातें, हुई होंगी, कहीं वादा, हुआ होगा
निगाहों ही निगाहों में,कोई अपना हुआ होगा
मुहब्बत यूं नहीं चलती, बिना रफ़तार की आँधी 
कहीं तो बह रही दरिया, किनारा भी हुआ होगा॥ 
मुकामे दौर को देखे, उमर नादान बन जाती 
अभी तो इक गिला आई, तड़फ जाया हुआ होगा॥

 
बहारें ही पता देंगी, जरा उस बाग में जाओ
जहां कलियाँ खिली होगी, वहीं भौरा हुआ होगा॥
जमाने की नजर बचके, चली होगी ये पुरवाई
सितम आगोश है देखों, कयामत भी हुआ होगा॥
किसी ने चाह ना देखी, दिलों की बात दिल जाने   
अरे कुन्दन नजर बदलों, निशाना भी हुआ होगा॥
मछलियाँ टांग दी जाती, निशाने तीर चल जाते
बहें जब आब आँखों से, बहाना भी हुआ होगा॥

Monday, April 24, 2017

किसान

जिस सड़क हम चल न पायें,
वँहा वह राह बनाता है।
उस बस्ती में झुग्गी उसकी,
जँहा रहते शहरी कतराता है।।
जो परिश्रम हमसे एक पहर ना हो,
उसे वह जीवन बनाता है।
पृथ्वी अपने अक्ष पर टिकी हो चाहे,
किसान अपना हल वँहा चलाता है।।
आने में वर्षा देर कर सकती है,
वर्षा से पहले जमीं को पसीने से सींचतें है।
हम तो उसकी मेहनत के ख़रीददार है,
जो रोटी के बदले उन्हें पैसे देते है।।

Saturday, February 25, 2017

शायर की शायरी

हम भी होंगे शायर कभी,
इक बार तबियत से दिल तोड़ मेरा।

माना नहीं हूँ क़ाबिल तेरी मोहब्बत का,
पर तूने भी तो कभी सिखाया नहीं इश्क़ा।
हम तो मरने को तैयार है आज भी तेरे लिए,
तूने ही नहीं आज़माया कुछ दिल का।।

उनके निगाहों के दीवाने है हम,
उसकी अदाओं पर मस्ताने है हम।
जब करता हूँ याद या कॉल उनको,
हर बार पूछते है क्यों है हम।।

पैगाम का इंतजार करते-करते रात बीत गई,
हुई थी कल शाम जो बात वो शाम बीत गई।
तुनक के काटा था जो तूने फ़ोन मेरा,
उसी के इंतेजार में इक और रात ढल गई।।

इंतजार रहता है हर शाम तेरा,
रातें कटती है लेकर नाम तेरा।
बड़ी मुद्दत से पालकर बैठा हूं ये आस,
कभी तो आएगा कोई पैगाम तेरा।।

Sunday, February 19, 2017

ग़ालिब सा मुक़्क़दर

ग़ालिब सा मुक़्क़दर लेकर पैदा हुआ हूँ मैं।
जँहा भी गया हर दर से ठुकराया हुआ हूँ मैं।।

बदलती है किस्मतें सभी की शायद।
दुनियाँ के रवाज़ो में जलाया हुआ हूँ मैं।।

चाहतों की कद्र कँहा किसी को है यँहा।
बस धर्म और जात को पूछता है जहाँ।।

कितने घर टूटे इन दकियानूसी विचारों से।
अब इसके ही गिरफ़्त में पहुँचा हुआ हूँ मैं।।

ग़ालिब सा मुक़्क़दर ले कर पैदा हुआ हूँ मैं।।
..............To be continued................

ज़िन्दगी बस तेरा नाम नहीं

ज़िन्दगी बस तेरा नाम नहीं,
फिर क्यों तेरा ख़्याल जाता नहीं।
दिन ढ़ल जाता है इस दौड़ती दुनियाँ में,
शामें जाने क्यों कटती  नहीं।
जबसे छोड़ के तुम हो गये,
होठों पे मुस्काने अब आती नहीं।।

डूबा रहता हूँ हर पल मैं तुझमे ही,
हर यादें है तेरी मुझमे समाई।
जैसे सजता हो कोई मुरत मंदिर में,
तेरी तस्वीर है खुद में सजाई।
वो बीते थे दिन जो संग में तेरे,
जाने लौट के फिर क्यों आते नहीं है।।